🔴 पटना में गोली, बक्सर में गैंग, अस्पतालों में हत्याएं – बिहार में अपराध का नया चेहरा! Chandan Mishra Murder Case
Chandan Mishra Murder Case: बिहार में हत्या की ताजा खबरों की अगर एक लिस्ट बनाई जाए तो यकीन मानिए, सिर चकरा जाएगा। कभी बालू माफिया की दुश्मनी, तो कभी आपसी रंजिश, कभी सुपारी किलिंग तो कभी गैंगवार – अपराध की इस ताबड़तोड़ बौछार ने राजधानी पटना से लेकर बक्सर तक दहशत फैला दी है। 4 जुलाई 2024 को पटना के जाने-माने बिजनेसमैन गोपाल खेमका की हत्या ने जब राज्य को झकझोरा ही था, तभी 17 जुलाई को पटना के पारस अस्पताल में सज़ायाफ्ता कैदी चंदन मिश्रा की फिल्मी स्टाइल में हत्या ने पुलिस की तैयारियों की पोल खोल दी। ये वही पारस अस्पताल है, जिसे हाई-सिक्योरिटी क्षेत्र माना जाता है, जहां दाख़िल होना आम इंसान के लिए आसान नहीं होता।
इस मर्डर केस की सबसे चौंकाने वाली बात यह थी कि पांच अपराधी बिना मास्क, बिना घबराहट के, अस्पताल के रूम नंबर 209 में दाखिल होते हैं, पिस्टल लहराते हुए चंदन मिश्रा को गोली मारते हैं और आराम से बाहर निकल जाते हैं। CCTV फुटेज भी यही कहानी कहता है। Chandan Mishra murder case केवल एक हत्या नहीं थी, बल्कि बिहार में अपराध के बढ़ते हौसले की सार्वजनिक घोषणा थी। पटना में गैंगवार अपडेट लगातार अख़बारों और चैनलों की हेडलाइन बना हुआ है, लेकिन कोई ठोस नतीजा अब तक नहीं निकल पाया है।
चंदनशेरू गैंग से ‘सुपारी किलिंग’ तक – बिहार का बदलता आपराधिक भूगोल
बक्सर का रहने वाला चंदन मिश्रा, जिसकी 16 साल की उम्र में ही आपराधिक दुनिया में एंट्री हो गई थी, अब पटना में एक हाई-प्रोफाइल शूटआउट का किरदार बन चुका है। Buxar gangster Chandan Mishra का नाम अब न सिर्फ बिहार बल्कि देशभर के क्राइम रिकॉर्ड्स में दर्ज हो गया है। चंदन के खिलाफ हत्या, लूट, आर्म्स एक्ट जैसे कुल 25 केस दर्ज थे और वो आजीवन कारावास की सज़ा काट रहा था। इस घटना से साफ है कि बिहार में ‘गैंग कल्चर’ अब सिर्फ सीमित इलाकों तक नहीं रहा, ये बड़े शहरों और संस्थानों तक अपनी पहुंच बना चुका है।

इस बीच, बिहार पुलिस का बचाव भी हैरानी से कम नहीं। Paras Hospital shooting incident पर पुलिस का कहना है कि ये “गैंगवार में मारा गया अपराधी” था, जबकि राज्य के नेताओं के बयान इसे अलग-अलग एंगल से पेश कर रहे हैं। जेडीयू नेता ललन सिंह इसे ‘आपसी विवाद’ बता रहे हैं, वहीं विपक्ष के नेता इस घटना को ‘Contract killing in Bihar’ करार दे रहे हैं। ऐसे में सवाल उठता है – अगर हाई सिक्योरिटी ज़ोन में अपराधी गोली चला सकते हैं, तो आम जनता की सुरक्षा कौन करेगा?
आंकड़े झूठ नहीं बोलते, लेकिन आंखें भी बंद नहीं की जा सकतीं
Crime in Bihar latest news पर एक नजर डालें तो 1 जुलाई से 17 जुलाई के बीच पटना में ही 14 हत्याएं दर्ज की गई हैं। जिनमें बिजनेसमैन गोपाल खेमका, वकील जितेन्द्र महतो, बालू कारोबारी रमाकांत और स्कूल संचालक अजीत कुमार जैसे नाम शामिल हैं। ये सभी घटनाएं साफ तौर पर दर्शाती हैं कि अपराधी बेखौफ हैं और सिस्टम कहीं न कहीं पंगु।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (NCRB) की रिपोर्ट के मुताबिक़, साल 2006 से 2022 तक बिहार में कुल 53,057 हत्याएं दर्ज हुई हैं। Bihar crime statistics ये दिखाते हैं कि राज्य में अपराध की दर कम होने का दावा अब खोखला साबित हो रहा है। Patna crime capital of India जैसे जुमले अब केवल राजनीतिक बयानबाज़ी नहीं, बल्कि जमीन पर महसूस हो रही सच्चाई है।
जब पुलिस कहे “मॉनसून में हत्या नहीं होती”, तो जनता क्या करे?
16 जुलाई को एडीजी कुंदन कृष्णन का एक बयान सामने आया – “जब तक बारिश नहीं होती, तब तक हत्याएं होती हैं, क्योंकि किसानों को काम नहीं होता।” इस बयान पर विपक्ष और आम जनता दोनों ही भड़क उठे। Tejashwi Yadav ने इसे ‘लॉ एंड ऑर्डर का डिसऑर्डर’ करार दिया, वहीं चिराग पासवान ने इसे ‘निंदनीय’ बताया। Law and order situation in Bihar पर ऐसी टिप्पणी जनता के जख्मों पर नमक छिड़कने जैसी लगती है।

जब पुलिस अधिकारी खुद इस तरह की बयानबाजी करते हैं, तो Political crime in Bihar को खुला संरक्षण मिलता है। ऐसे में आम नागरिक का विश्वास पूरी तरह डगमगा जाता है। पटना हाईकोर्ट की पूर्व डिप्टी रजिस्ट्रार मीरा दत्त ने कहा कि राज्य में अपराध की संस्कृति बढ़ गई है, और इसके पीछे बेरोजगारी, राजनीतिक शह और कोर्ट की धीमी प्रक्रिया जिम्मेदार हैं।
जब अस्पताल भी सुरक्षित न रहें, तो कहां जाएं लोग?
पारस अस्पताल की घटना ने 1998 में आईजीआईएमएस में हुए ब्रज बिहारी प्रसाद हत्याकांड की याद ताजा कर दी, जब गैंगस्टर श्रीप्रकाश शुक्ला ने एक मंत्री को हॉस्पिटल में गोली मार दी थी। उस वक्त भी सवाल उठा था – क्या अस्पताल अब अपराधियों के नए ‘शिकार स्थल’ बन गए हैं? बिहार पुलिस द्वारा कांट्रैक्ट किलर सेल बनाए जाने की घोषणा इस दिशा में एक कदम हो सकता है, लेकिन जब तक ज़मीनी एक्शन नहीं होता, तब तक सिर्फ नाम देने से अपराध नहीं रुकेंगे।
बिहार में आज जिस तरह से Contract killing in Bihar का ट्रेंड बढ़ रहा है, वो न सिर्फ कानून व्यवस्था पर सवाल खड़ा करता है बल्कि सामाजिक सुरक्षा पर भी गंभीर संकट है। Paras hospital murder case जैसी घटनाएं आम नागरिक को डरा रही हैं और यही डर अपराधियों को ताक़त दे रहा है।

निष्कर्ष: अपराध, राजनीति और डर – बिहार की नई पहचान?
बिहार की राजधानी पटना अब crime capital of India के तमगे की तरफ बढ़ रहा है। नेताओं की बयानबाजी, पुलिस की असंवेदनशीलता और अपराधियों का बेखौफ रवैया – इन तीनों का मेल आज के बिहार की असली तस्वीर है। Chandan Mishra murder case बिहार की न्याय व्यवस्था और पुलिस तंत्र की पोल खोलने वाला एक बड़ा संकेत है।
जब तक अपराधियों को राजनीतिक संरक्षण मिलता रहेगा, जब तक पुलिस बयान देने में व्यस्त रहेगी और जब तक आम जनता डर में जीती रहेगी – तब तक कानून व्यवस्था केवल कागजों में ही ठीक नजर आएगी। बिहार को सच में बदलना है तो सिर्फ आंकड़ों से नहीं, ज़मीन पर काम करना होगा। वरना अगला शिकार कौन होगा, ये कोई नहीं जानता।