स्वतंत्र वीर सावरकर की फिल्म का रिव्यु -देशप्रेम का अद्भुत उदाहरण और रोंगटे खड़े कर देने वाली कहानी

जब भी आजादी की लड़ाई की बात हो तो वर्तमान पीढ़ी को महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू के नाम ही  स्मरण होता है। लेकिन यह फिल्म ‘स्वातंत्र्य वीर सावरकर’ देश की खातिर अपना सब कुछ दांव पर लगाने वाले भूले-बिसरे नायकों की दर्दनाक संघर्ष गाथा को दिखाती है।

‘स्वातंत्र्य वीर सावरकर’ की कहानी

इस फिल्म की कहानी 18वी शताब्दी के आखिरी दशक में, जब देश प्लेग की महामारी से जूझ रहा था, तब से शुरू होती है। अंग्रेजी सरकार की गुलामी में देशवासी कीड़े-मकोड़ों की तरह मर रहे थे। हमने कोरोना का खतरनाक दौर देखा है, लेकिन प्लेग के शिकार सभी लोगो को अंग्रेजों ने जिंदा जलाया था। उस समय विनायक दामोदर सावरकर (रणदीप हुड्डा) के पिता दामोदर सावरकर प्लेग का शिकार हो गए और अपने बड़े बेटे गणेश दामोदर सावरकर (अमित सियाल) और उसकी पत्नी को अपने परिवार की जवाबदारी सौंपकर इस दुनिया से चले गए।  जाते जाते दामोदर ने अपने तीनों बेटों को बताया कि अंग्रेजों की शक्ति इतनी बड़ी है कि वे उनसे लड़ने के लिए कुछ नहीं करेंगे।विनायक, जो बचपन से ही अंग्रेजों के खिलाफ था, अपने बड़े भाई गणेश के साथ मिलकर गुप्त रूप से अभिनव भारत बनाया, जो अंग्रेजों के खिलाफ सशस्त्र संघर्ष की वकालत करता था। सावरकर ने न सिर्फ अंग्रेजी कपड़े को बर्बाद कर दिया, बल्कि उनके संगठन से जुड़े कई युवा लोगों ने अंग्रेज अधिकारियों को मार डाला।

‘स्वातंत्र्य वीर सावरकर’ के कलाकार

फिल्म पिछले साल रिलीज होनी थी, लेकिन रणदीप ने कई हिस्से दोबारा शूट किए हैं, और उनकी मेहनत का असर फिल्म में दिखाई देता है। काला पानी वाले सीन को देखकर रणदीप का फिल्म सरबजीत का अवतार याद आता है। रणदीप ने अपने किरदार में बहुत मेहनत की है जब तक कि कलाकारों की एक्टिंग की बात है। यही कारण है कि वह आपको पर्दे पर सावरकर ही दिखाते हैं। अमित सियाल सहित अन्य कलाकारों ने भी उत्कृष्ट काम किया है। फिल्म में विनायक और गणेश के अलावा फिल्म के बाकी किरदारों में लिए गए कलाकार अपने रोल में उतने अच्छे नहीं लगते। फिल्म का सिनेमटोग्रफी अच्छा है और इसके सेट सुंदर हैं।

जब भी आजादी की लड़ाई की बात हो तो वर्तमान पीढ़ी को महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरू के नाम ही  स्मरण होता है।

100 साल पुराने दौर को सार्वजनिक करना बेशक मुश्किल था। वहीं, भयानक काला पानी का दृश्य दर्शकों को हैरान कर देता है। फिल्म का बैकग्राउंड स्कोर भी अच्छा है, साथ ही किरदार की ड्रेस डिजाइन भी अच्छी है। फिल्म का संगीत बेहतर नहीं है। दर्शकों को इसका कोई भी गीत देशभक्ति की भावना नहीं जगाता।

‘स्वातंत्र्य वीर सावरकर’ मूवी रिव्यू

उस समय सावरकर को लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक का आशीर्वाद मिला, जो आजादी के आंदोलन के प्रमुख नेता थे। सावरकर ने कानून की पढ़ाई करने के लिए लंदन पहुंचकर अंग्रेजों को उनके ही दांवपेंचों से हराने की कला सीखने की कोशिश की। यहां लंदन में मौजूद सभी भारतीय क्रांतिकारी श्याम जी कृष्ण वर्मा के इंडिया हाउस में मिलते थे। सावरकर ने उनकी मदद से अपने संगठन के लोगों को हथियार प्राप्त करने और बम बनाने की कला सीखी।लंदन में ब्रिटिश सीक्रेट सर्विस के प्रमुख कर्जन वायली को खुलेआम गोली मारकर मदन लाल धींगड़ा ने सनसनी फैला दी। इस घृणित घटना के बाद, सावरकर को गिरफ्तार करके भारत भेजा गया, जहां उन्हें दोहरी उम्रकैद की सजा सुनाई गई और काला पानी, यानी अंडमान निकोबार द्वीप समूह पर भेजा गया, जहां से कोई भी वापस नहीं लौटता। 

स्वातंत्र्य वीर सावरकर

इसके बाद की कहानी अगर आपको जानना हैं तो आप सभी को  सिनेमाघर में जाकर इस मूवी को देखना होगा, क्योंकि अगर मैंने पूरी कहानी आप लोगो को सुना दी तो मोवी देखने का मज़ा फ़ीका पड़ जायेगा, मेरा मानना हैं की आप सभी को ये मूवी जरूर देखनी चाहिए

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